तुलसी के विभिन्न नाम, गुण, महत्त्व, प्रजातियां, स्वरुप

भारत, श्रीलंका, नेपाल आदि के विभिन्न क्षेत्रो में आसानी से पाए जाने वाली औषधीय गुणों से परिपूर्ण पौधा है तुलसी. धार्मिक कार्यो में भी प्राचीन काल से ही इसका अत्यधिक महत्त्व रहा है भारत में हिमालय पर भी लगभग 2500 मीटर उचाई तक तुलसी मिलती है यह जंगलो में भी प्रायः स्वत: उगी हुई मिलती है. विभिन्न गुणों से परिपूर्ण पवित्र पौधा तुलसी बगीचे में, घरो में एवं मंदिर के आस-पास आसनी से मिल जाते है. इसका अत्यधिक प्रचलित नाम तुलसी, चरक एवं कश्यप संहिता में इसका नाम सूरस, सुश्रुत संहिता में सुरमा मिलता है. पुराणों में इसका नाम वृंदा है, यह ग्राम्या नाम से भी जाना जाता है.

तुलसी का वैज्ञानिक नाम ओसिमम टेन्यूफ्लोरम
कुल का नाम लैमिएशी
वंश ओसिमम
जाति टेन्यूफ्लोरम
गण लैमिएल्स
द्विपद नामओसिमम टेन्यूफ्लोरम

परिचय नाम

राम्या, सुरभि, सुगंधा, सुरसा, बहुपत्री, मंजूरी, वृंदा, सुमंजरी, भूतप्रिया, सुरेज्या, वैष्णवी विष्णु, बल्लभा हरिप्रिया,

तुलसी के विभिन्न भाषा में नाम

  • हिंदी – तुलसी, वृंदा, विन्द्रावनी, सफेद तुलसी, काली तुलसी
  • मराठी – तुलसा, तुलसी,
  • तेलगु- गग्गेरा, ग्ग्गेरर्चेट्टू, वृन्दा, इयुलसी
  • कर्नाटकी – एरेड तुलसी
  • सिंहली – मडरुटला
  • पुर्तगाली – मगेरिकाओ
  • फारसी रहां, रेहान
  • अरबी – तुलसी बदरूत, शाहशफारण
  • अंग्रेजी – होली बेसिल, सेक्रेड बेसिल, मॉन्क्स बेसिल
  • फ्रेंच – बेसिलिक सेंट

तुलसी के गुण प्रकाशक नाम

  • सुरसा -जो मुख से सुख लाला रस ला दे
  • अमित राक्षसी- राक्षस रूप कृमियो को भगा देने वाला
  • पापहरनी- रोग रूप पाप का नाशक
  • सुभगा – कल्याण करने वाली
  • कायस्था – शारीर को स्थिर करने वाली
  • तीव्रा – तेजी से गुण करने वाली
  • सरला – चिकित्सा में सरलता से उपयोग किए जाने वाली
  • तुलसी- रोगा दियो का संघार करने में जिसकी तुलना में कोई और ना हो
  • पूत पत्री – पत्तों का प्रयोग शरीर को पवित्र करता है.

तुलसी की रासायनिक संरचना एवं उपयोग

तुलसी में कई जैव रासानिक पदार्थ पाए जाते है हलाकि अभी तक विस्तृत रूप से इसका विश्लेषण नहीं हो पाया है. इन रसायन में प्रमुख ट्रेनिन, सेवोनिं, ग्ल्याकोसाइड , एलकेलाइडस आदि है. तुलसी ओषधिय गुणों से भरपूर है इसमें विटामिन एवं खनिज प्रचुर मात्र में पाया जाता है जिनमे प्रमुख विटामिन-सी, कैल्सियम, जिंक, आयरन, क्लोरोफिल, सिट्रिक एसिड, टारटरिक एसिड, मेलिक एसिड आदि है. इनका उपयोग विभिंन्न रोगों के उपचार में किया जाता है जैसे –

  • रोग प्रति रोधक क्षमता बढ़ाने के कारण इसका उपयोग सर्दी, जुखाम में किया जाता है.
  • एंटीवैक्टीरियल होने के कारण इसका उपयोग चोट लगने पर किया जाता है.
  • एंटीस्ट्रेस गुण के कारण इसका उपयोग स्ट्रेस दूर करने के लिए किया जाता है.

तुलसी की प्रजातियां

वनस्पति शास्त्र के विद्वानो ने लामीआसीकुल के तुलसी गन में 60 जातियों के पोधे को ढूंड निकाला है ये जातियां भारत, अफ्रीका, अरब और ब्राजील आदि गर्म प्रदेशो में मिलती है अत्रेय ने अपने ग्रंथ में 9 जातियों सुमुख, सुरस, कुठेरक, अर्जक, गंडीर, कालमालक, पर्णस, क्षवक और फनिझ्जक के चिकित्सिय उल्लेख किए है, तुलसी की सामान्यतः निम्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं:

  1. ऑसीमम सैक्टम
  2. ऑसीमम वेसिलिकम (मरुआ तुलसी) मुन्जरिकी या मुरसा।
  3. ऑसीमम वेसिलिकम मिनिमम।
  4. आसीमम ग्रेटिसिकम (राम तुलसी / वन तुलसी / अरण्यतुलसी)।
  5. ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम (कर्पूर तुलसी)।
  6. ऑसीमम अमेरिकम (काली तुलसी) गम्भीरा या मामरी।
  7. ऑसीमम विरिडी।

इनके विभिन्न जातियों के ओषधीए उपयोग विभिन्न देशो में विभिन्न रूपों में मिलते है जो कुछ इस प्रकार है-

  • यूरोप में बर्बरी और राम तुलसी
  • चीन और हिंदचीन में बर्बरी
  • जापान और मलाया में ओसिमम, क्रिस्पम थम्ब
  • फिलीपींस द्वीपों में तुलसी, बर्रीबरी और राम तुलसी
  • गायना में ओसिमम कृष फिल्म का माइक्रेंथम विल्ड
  • ब्राजील में राम तुलसी अर्जक
  • ला रि यूनियन बर्बरी और राम तुलसी
  • इथोपिया और हवाएबीसीनिया में राम तुलसी
  • गिनी और गोल्ड कोस्ट में बर्बरी, अर्जक और ओसिमम विरडे विल्ड
  • सीरा लिआनो और साइबेरिया में ओसिमम विरिडे
  • दक्षिणा अफ्रीका में अर्जक और ओसिमम विरिडे

स्वरुप

अनेक वर्षी तक जीवित रहने वाली यह पौधा 30 से 90 सेंटीमीटर ऊँचा होता है इसका फेलाव 1.5 से 2 मीटर तक होता है शखेम गोल एक दुसरे के सामने सीधी उएर की ओंर जाती हुई फेली हुई होती है इसके पत्ते समाकार वृत्त सीख 2.5 से 6.25 सेंटीमीटर लंबे होते है, फूलो की मंजरी शाखाओ के सिरों पर लगती है इसके फूल सालो भर खिलते रहते है, मंजरी पर फूल चक्रों में लगते है मंजरी 15 से 20 सेंटीमीटर लंबी होते है बीज अर्धघंटाकृति चौड़ाई लिए समाकार जरा दबे हुए प्रायः चिकने पीले लाल भूरे से रंग के होते हैं बीज में से अंकुर निकलने पहले दो दल फुटते हैं.

ऐतिहासिक विवेचन

ग्रीश के गिरजो में तुलसी पवित्र मणि जाती है .मंडिट्रेनियन के तटवर्ती को तुलसी को स्वस्थ प्रदान करने वाला पौधा समझा जाता है जीटी बेंट की पुस्तक दी साईंक्लेड के में कहा गया है की यह पौधा ईशा के कब्र् के उपर उग आई थी इसलिए पुर्वीय गिरजो में यह पूजी जाती है. तुलसी उत्शव के दिन महिलाएं इस पौधे की शाखाएँ लेकर गिरजे जाती है, दवा के रूप में यह भारत में 300 इश्वी पूर्व से इस्तेमाल हो रहा है वेदों आर्यनको तथा ब्राह्मण ग्रंथो में तुलसी का उलेख नहीं मिलता है लेकिन चरक और सुसुरुत जिस 800 वन्स्स्पति के बारे में लिखा है उनमे से यह भी एक है.

तुलसी को इतना महत्व क्यों दिया जाता है

  • तुलसी को जो उच्च धार्मिक स्थान मिल गया है कारण तो यही है कि चिकित्सा प्रयोजनों में काम आने वाला यह एक ऐसा उपयोगी पौधा है जो प्रायः सारे साल सब जगह से उपलब्ध हो सकता है
  • इसके प्रयोग के तरीके बहुत सरल है.
  • अनजान के हाथ से दिया गया भी हानि नहीं करता
  • इसको उगाने और इसे जीवित रखने में विशेष निपुणता की जरूरत नहीं
  • जिन मकानों के साथ गृह उद्यान नहीं वे अपने छोटे घर में भी लगा सकते हैं.
  • घर में गृह उद्यान में अथवा मंदिर के बगीचे में यह सुगंध फैलाता है जिससे वायु शुद्ध रहती है.
  • बिना मूल्य यह प्रत्येक गांव प्रत्येक शहर और यहां तक की प्रायः मिल जाता है जिससे गरीब और अमीर मेरे सबकी पहुंच में है.
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