दवा तो दवा अब हवा भी बिक रही
दूध दही घी मक्खन को छोरो
अब ये फिजा भी बिक रही
हे मानव! अब तो सुधरो…
प्रकृति का दोहन हे मानव है तेरा ही शोषण
हे मानव! प्रकृति से फल फूल जल पाते हो
फिर क्यों खुद इसका हत्यारा बन जाते हो
हे मानव! अब तो सुधरो…
पेड़ो को ना काटो मानव
ये ही तो है तेरे जीवन की रेखा इन का दोहन है
मानव है तेरा शोषण
ये प्रकृति ही तो है इस धारा की झरोखा
इसे काट तुम सुख पाते हो
ये है जीवन की सबसे बड़ी धोखा
हे मानव! अब तो सुधरो …
(रचनाकार –अंशुमान कर्ण )